हस्तिनापुर का दुर्भाग्य: विकास से वंचित महाभारत की ऐतिहासिक धरती, क्या बदलेगी सियासी परंपरा?

हस्तिनापुर (मेरठ): उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक हस्तिनापुर विधानसभा, जो महाभारत कालीन तीर्थ नगरी और सनातन धर्म की संगम स्थली के रूप में जानी जाती है, आज भी विकास से वंचित है। इसका प्रमुख कारण सत्ताधारी पार्टियों द्वारा इस क्षेत्र की लगातार उपेक्षा है। आश्चर्यजनक बात यह है कि आजादी के सात दशक बाद भी किसी सत्ताधारी पार्टी ने हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र के किसी भी नेता को मेरठ मे जिला अध्यक्ष जैसे अहम पद से नवाजा नहीं है।

प्रदेश में ऐसी कई सीटें हैं जहां पर किसी भी पार्टी के लिए जीतना शुभ होता है। जिससे राज्य में उसकी सरकार बन सके. ऐसी ही एक सीट जनपद की हस्तिनापुर विधानसभा है। बावजूद इसके हस्तिनापुर विधानसभा का दुर्भाग्य देखिए लखनऊ से सीधा संबंध रखने के बाद राजनीतिक विरासती परिवार को छोड़कर हस्तिनापुर विधानसभा से किसी भी पार्टी ने मेरठ जनपद मे जिला अध्यक्ष पद के ताज से नहीं नवाजा। शायद यही दुर्भाग्य है कि ऐतिहासिक तीर्थ नगरी व सनातन धर्म की संगम स्थली होने के बावजूद भी हस्तिनापुर विधानसभा आज भी विकास से वंचित है।

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क्यों है हस्तिनापुर का यह दुर्भाग्य?

हस्तिनापुर विधानसभा का संबंध प्रदेश की राजधानी लखनऊ से है। जिस पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से जीतता है, अक्सर वही पार्टी प्रदेश में सरकार बनाती है। इसके बावजूद, यह विधानसभा क्षेत्र आज भी बुनियादी विकास से कोसों दूर है।

  • कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने दिया अवसर:
    2006 से 2014 तक कांग्रेस ने धनपुरा गांव के विनय प्रधान को जिला अध्यक्ष बनाया था। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने भी इसी क्षेत्र के उदयवीर सिंह गुर्जर को जिला अध्यक्ष बनाया। लेकिन अन्य सत्ताधारी पार्टियों, विशेष रूप से भाजपा, ने अब तक हस्तिनापुर विधानसभा से किसी को यह पद नहीं सौंपा।

राजनीतिक उपेक्षा के परिणाम

हस्तिनापुर सिर्फ सनातन धर्म के लिए ही नहीं, बल्कि जैन और सिख धर्म के लिए भी पवित्र नगरी है। यहां धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहरों के विकास की असीम संभावनाएं हैं। लेकिन राजनीतिक उपेक्षा के चलते यह क्षेत्र आज भी अविकसित है।

  1. धार्मिक स्थल की अनदेखी:
    हस्तिनापुर का जैन तीर्थस्थल, पांडव टीला और अन्य ऐतिहासिक धरोहरें वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो सकती थीं। लेकिन राज्य और केंद्र सरकारों ने इनकी अनदेखी की है।
  2. सड़क और परिवहन सुविधाओं की कमी:
    हस्तिनापुर को मेरठ और राजधानी लखनऊ से जोड़ने वाली सड़कें जर्जर हैं। सार्वजनिक परिवहन का भी अभाव है, जिससे पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को परेशानी होती है।
  3. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी:
    क्षेत्र में उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद सीमित हैं। अधिकांश निवासी बेसिक सुविधाओं के लिए मेरठ या लखनऊ पर निर्भर हैं।

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क्या भाजपा तोड़ेगी यह परंपरा?

चुनावों में हमेशा मजबूत प्रदर्शन करने वाली भाजपा से इस बार उम्मीद है कि वह हस्तिनापुर विधानसभा से किसी स्थानीय नेता को जिला अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का मौका देगी। क्षेत्र के लोग अब इस उम्मीद में हैं कि यह कदम इस क्षेत्र के विकास की राह खोल सकता है।

क्यों है यह मुद्दा महत्वपूर्ण?

  • धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व:
    हस्तिनापुर सिर्फ धार्मिक नगरी ही नहीं, बल्कि महाभारत काल से जुड़े अनेक ऐतिहासिक स्थलों का केंद्र भी है।
  • राजनीतिक प्रभाव:
    यह सीट किसी भी पार्टी के लिए चुनावी सफलता की कुंजी मानी जाती है।
  • विकास की संभावनाएं:
    धार्मिक पर्यटन, कृषि आधारित उद्योग, और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण से क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं हैं।

हस्तिनापुर के नेताओं की उम्मीदें

स्थानीय नेताओं और जनता का मानना है कि अगर उन्हें जिला अध्यक्ष या राज्यसभा/विधान परिषद सदस्य जैसे पदों पर प्रतिनिधित्व मिलता है, तो क्षेत्र के विकास को गति मिल सकती है।

हस्तिनापुर का यह राजनीतिक दुर्भाग्य खत्म होना चाहिए। इसके लिए सभी सत्ताधारी पार्टियों को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। क्षेत्र के नेताओं को सशक्त बनाकर विकास की योजनाएं लागू करनी होंगी, ताकि हस्तिनापुर की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान को नए आयाम मिल सकें।

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