भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय योद्धा बटुकेश्वर दत्त की प्रेरणादायक कहानी | BatukeshwarDutt
नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और भगत सिंह के साथी, बटुकेश्वर दत्त जी की जयंती के अवसर पर पूरे देश में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। बटुकेश्वर दत्त का नाम भारतीय इतिहास में उन क्रांतिकारियों में शुमार है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन को झकझोरने और भारत को आज़ाद कराने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी।
बटुकेश्वर दत्त: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाल में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही ब्रिटिश शासन की बर्बरता को देखा और देश को स्वतंत्र कराने का प्रण लिया। पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई, और यह मित्रता देशभक्ति के संघर्ष का महत्वपूर्ण अध्याय बन गई।
असेंबली में बम फेंकने का साहसिक कार्य:
1929 में, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश हुकूमत को संदेश देने के लिए दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। यह बम किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का प्रतीक था। बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ्तार होकर न्यायालय में अपना उद्देश्य स्पष्ट किया।
कारावास और बलिदान
असेंबली में बम फेंकने के बाद उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बटुकेश्वर दत्त ने जेल में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। स्वतंत्रता के बाद भी वे स्वतंत्रता सेनानियों की दुर्दशा से व्यथित रहे। उनका निधन 20 जुलाई 1965 को लंबी बीमारी के बाद हुआ।
बटुकेश्वर दत्त की विरासत
बटुकेश्वर दत्त ने अपनी निडरता और देशभक्ति से यह सिखाया कि देश की आज़ादी के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई धर्म नहीं। उनके साहसिक कार्य और बलिदान ने युवा पीढ़ी को प्रेरित किया और आज भी वे लाखों लोगों के आदर्श हैं।
आज का महत्व
बटुकेश्वर दत्त की जयंती पर उन्हें याद करना न केवल उनके बलिदानों को सम्मान देना है, बल्कि उनकी प्रेरणा से सीख लेना है।